Baba jai gurudev ki prathna
Jai Gurudev Naam prabhu ka
Hello friends here are some baba jai gurudev ki prathna for all devotee. please share with your loved one


मुझे गुरु देव चरणों में लगा लोगे तो क्या होगा?


मुझे गुरु देव चरणों में लगा लोगे तो क्या होगा?
भटकती सुर्त को पावन बना दोगे तो क्या होगा?
न समरथ तुम सदृश कोई है आया दृष्टि में मेरे।
शरण में इससे आया हूॅ बचा लोगे तो क्या होगा।
तुम्हारे द्वार से कोई कभी खाली नहीं जाता।
मेरी झोली भी भर करके उठा दोगे तो क्या होगा।
दयालु दीन बन्धु नाम तेरे लोग कहते हैं।
दया कर तुच्छ सेवक यदि बना लोगे तो क्या होगा।
जानता हूं कि उसके योग्य भी मैं हूं नहीं स्वामी।
हो पारस लौह को कंचन बना दोगे तो क्या होगा।
बहुत बीती रही थोड़ी वो यह भी जाने वाली है।
उस अन्तिम स्वांस लौं अपना बना दोगे तो क्या होगा।




मोको कहां ढूढ़े बन्दे, मैं तो तेरे पास में।। टेक।।



मोको कहां ढूढ़े बन्दे, मैं तो तेरे पास में।। टेक।।
ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकान्त निवास में।
ना मन्दिर में ना मस्जिद में, ना काशी कैलाश में।। 1।।
ना मैं जप में ना मैं तप में, ना मैं बरत उपवास में।
ना मैं क्रिया कर्म में रहता, नहीं योग सन्यास में ।। 2।।
नहीं प्राण में नहीं पिंड मंे, न ब्रह्माण्ड आकाश में।
ना मैं भृकुटि भंवर गुफा में, सब श्वासन की श्वास में।।3।।
खोजी होय तुरत मिल जाऊं, एक पल की हि तलाश में।
कहहिं कबीर सुनो भाई साधो, सब स्वांसों की स्वांस में ।। 4।।




Sant Ravidas Ji Ki Pothi

Sant Ravidas Ji Ki Pothi


Hello My dear fellow citizens, today you will be proud to see that how our sant ravidas ji warned whole world from virus spreading by their poems.


today we can see all words come to make it happen in 2020 in form of coronavirus, which is originated in wuhan, China.



संत गुरु रविदास जी की पोथी


संत रविदास के नाम पर कई कविताओं और भजनों का संकलन मिलता है जो ‘संत रविदास जी की पोथी’ के नाम से जाना जाता है। उसमें लिखा है :




एक बार रविदास ज्ञानी,

कहन लगे सुनो अटल कहानी।

कलयुग बात साँच अस होई,

बीते सहस्र पाँच दस होई।




भरमावे सब स्वार्थ के काजा,

बेटी बेंच तजे कुल लाजा।

नशा दिखावे घर में पूरा,

माता-बहन का पकड़ें जूड़ा।




अण्डा मांस मछलियाँ खावें,

भिक्षा कर अति पाप कमावें।

जबरी करिहैं भोग बिलासा,

सज्जन मन अति होय निराशा।




पर नारी को गले लगइहैं,

नारी भी अति आतंक मचहइहैं।

अपने पति को मार भगइहैं,

पर प्यारे को गले लगइहैं।




कर्म देख पृथ्वी फट जहइहैं,

अम्बर भी दरारें खइहैं।

अति भीषण क्रांति की ज्वाला,

तामें कूद पड़े मत्तवाला।




जब देश आजाद होइ जइहैं,

वो शक्ति जाकर छुप जइहैं।

धरे वेश साधु का न्यारा,

गुरु नाम का करै प्रचारा।




बल्कल का वस्त्र पहिनइहैं,

साधन भजन सबसे करवइहैं।

ऐसा मन्दिर एक बनवइहैं,

जो भूमण्डल पर कहीं न दिखइहैं।




पंचम कलश अनोखी मूरत,

झण्डा श्वेत सुरीली सूरत।

गुरु नाम से सब जग जाने,

उनको परम पूज्य अति मानै।




सत्य पंथ का करि प्रचारा,

देश धर्म का करि विस्तारा।

करैं संगठन बनि ब्रह्मचारी,

उन समान कोई न उपकारी।

अस कहि मौन भए रविदासा,

विनयपूर्ण मुनि प्रेम प्रकाशा।

..................




भारत में अवतारी होगा

जो अति विस्मयकारी होगा

ज्ञानी और विज्ञानी होगा

वो अदभुत सेनानी होगा




जीते जी कई बार मरेगा

छदम वेश में जो विचरेगा

देश बचाने के लिए होगा आह्वान

युग परिवर्तन के लिए चले प्रबल तूफ़ान




तीनों ओर से होगा हमला

देश के अंदर द्रोही घपला

सभी तरफ़ कोहराम मचेगा

कैसे हिंदुस्तान बचेगा




नेता मंत्री और अधिकारी

जान बचाना होगा भारी

छोड़ मैदान सब भागेंगे

सब अपने अपने घर दुबकेंगे




जिन जिन भारत मात सताई

जिसने उसकी करी लुटाई

ढूंढ-ढूंढ कर बदला लेगा

सब हिसाब चुकता कर देगा




चीन अरब की धुरी बनेगी

विध्वंसक ताकत उभरेगी

घाटे में होंगे ईसाई

इटली में कोहराम मचेगा

लंदन सागर में डूबेगा




युद्ध तीसरा प्रलयंकारी

जो होगा भारी संहारी

भारत होगा विश्व का नेता

दुनिया का कार्यालय होगा

भारत में न्यायालय होगा




तब सतयुग दर्शन आएगा

संत राज सुख बरसाएगा

सहस्र वर्ष तक सतयुग लागे

विश्व गुरु भारत बन जागे।'




पिछले तीन चार दिन में इस रचना को पढ़ने के लिए पचास हज़ार से अधिक लोग गुरु रविदास जी के लिंक पर आये हैं । हम अपने साधनों से पूरा पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि यह रचना किसने, कब और क्यों लिखी ?



अगर आप इसकी सत्यता जानना चाहते हैं तो सबसे पहले गुरूजी की प्रमाणिक वाणी का अध्यन करें, बहुत सी बातें अपने आप साफ़ हो जाएँगी; जैसे गुरु जी के लिए देश जाति का कोई बंधन नहीं था, सारी दुनियां ही उनके लिए देश थी और एक ही राजा (ईश्वर); तो वह किसी देश की सर्वोच्चता की बात क्यों करेंगे ? फिर आप भाषा पर विचार करें । रचना में आये देशों और शहरों के नाम भी भारत में उस समय इतने प्रचलित नहीं थे ।

हम लोगों से अपील करते हैं कि अपने विवेक से काम लें, अन्धविश्वास ने हमें कुछ नहीं दिया और न ही देगा । गुरु जी के नाम पर की गई भविष्यवाणियों पर नहीं, उनके बताये रास्ते पर चलने की आवश्यकता है, जो कठिन तो बहुत है परन्तु असंभव नहीं, अगर असंभव होता तो वह यह रास्ता हमें बताते ही क्यों ?


Please share this poem by our great sant ravidas ji with all your friends and family


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